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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त

ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त

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ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त कुछ ज़्यादा ही बड़ी है

ज़िंदगी भी यहाँ पे अपने सवाल लेकर खड़ी है


कुछ पल सुकून बहुत ही महँगा हो चला है

जिधर देखो गम बड़ा ही सस्ता हो चला है


कुछ आज़ादी की ज़रूरत बढ़ रही ज़िंदगी में

कुछ बंदिशें बाज़ार में खुलेआम बिक रही है


इस फेहरिस्त में कुछ लम्हे क्यों मिटाये गए

मरासिम से ज्यादा लोगों के दिल बिक गए


अपने लिए जो भी लिखा था फ़ेहरिस्त में

नहीं मिलता आज कुछ हाट की महफ़िल में


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