ख़्वाब की तामीर
ख़्वाब की तामीर
एक ख़्वाब सा देखा था,
कभी ख़्वाब में कहीं !
अटका हुआ सा है जो,
मेरे ज़हन में आज भी कहीं !
इस उलझी हुई उलझन को,
ऐ ख़ुदा तू सुलझा दे !
मेरे उस ख़्वाब की,
बस एक बार तामीर करा दे !
मुझे मेरे इश्क़ से,
बस एक बार मिला दे !
बस एक बार खो के उसमे,
बिख़र जानें की चाहत है !
एक बार उसको छू के,
महसूस करने की चाहत है !
बस एक बार मेरी साँसों को,
उसकी साँसों से उलझा दे !
फिर बेशक़ मुझे अपने,
पास बुला ले !
मेरे उस ख़्वाब की,
बस एक बार तामीर करा दे...!
