झूठ की बुलंदी पर, कच्ची इमारतों की तामीर ! सच्चाइयों को धूमिल, काश, कभी की न होती झूठ की बुलंदी पर, कच्ची इमारतों की तामीर ! सच्चाइयों को धूमिल, काश, कभ...
मेरे उस ख़्वाब की, बस एक बार तामीर करा दे...! मेरे उस ख़्वाब की, बस एक बार तामीर करा दे...!