उम्र झूठ की...
उम्र झूठ की...

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झूठ की बुलंदी पर,
कच्ची इमारतों की तामीर !
सच्चाइयों को धूमिल,
काश, कभी की न होती !!
शमशानों पर बाजार,
सजाया जो तुमने !
वक्त के तकाजों ने,
अब करवट बदल ली है !!
भूले हुए हाथों ने
थाम ली अब शमशीरें !
भांप ली जब हमने,
तुम्हारी झूठी तकरीरें !!
प्रेम की मजार,
सजाई ही न होती हमने!
उम्र झूठ की जो,
न बताई होती तुमने !!