ख़ामोशी
ख़ामोशी
हर एक बात पर जंग छेड़ी जाये,
ये जरुरी तो नही...
कभी कभी ख़ामोशी जंग को भी मात देने का हुनर सिखाती है....
ख़ामोशी की एक अलग ही भाषा , अलग जुबां होती है...
कुछ न कहकर सब कह जाती है...
मैं बरसो से खामोश हूँ, लोग बेखबर है,इस बात से...
ये ख़ामोशी ही पहचान बन मेरी,कह जायेगी हर अनकही दास्तां....
जख्म दफ़न किया था जो दिल में कभी...
नासूर बन रिस जायेगा एक दिन....
मुक्कमल होगी जहां में तब....
रफ्तार ए सफर ज़िन्दगी की!