ख़ामोश चीखें
ख़ामोश चीखें
रोशन चरागों ने किए कुछ घर मगर
कुछ चिरागों ने ही किसी घर की रोशनी छीन ली।
कहते थे फ़र्क नहीं होता आजकल बच्चों में
गलत है वो देखो कही मासूम का बचपन मसल गया
तो कही बुढ़ापे की आख़िरी उम्मीद ही जल गई।
वो खिलखिलाती हँसी का मुँह दबाते रहे
वक़्त नेवक़्त से कही पहले उसकी साँसे ही छीन ली।
काश भरोसा ना करतीवो किसी को अपना समझ
यहाँ हर तरफ़ बसती है बस अब एक गंदी नज़र
जिसकी नज़रो में ना तुम हो किसी की बहन
और ना माँ का ही सिखाया आता है नजर।
कब तलक डर के साए में जीते रहेंगे
कब तलक ये भेड़ियेखुलेआम विचरते रहेंगे।
कब तलक इंसाफ की आस मेंनिर्भया कठुआ
तो अब प्रियंका न्याय के नाम पर मरकर भी जंग लड़ते रहेंगे।
कब तलक बेटियां डर-डर कर जिये अब
कब तलक हर शब्द रोए इन कागज़ों पर
कब तलक बेटियां बैठें अपनी अस्मिता के लिए इन धरनों पर।
हाँ कब तलक लाश काँधों पर उठाए इन बेटियों का
कब तलक छोटे कपड़ो पर तंज कसते रहेंगे।
कब तलक ऐसे बेटों के क़सीदे पढ़ते रहेंगे
कब तलक आँखों से हर लड़की की अस्मत छलनी करते रहोगे
कब तलक बेशर्म बनकर घृणित तानों से इन्हें भिगोते रहोगे।
हाँ कब तलक यूँ भीड़ में
चुपचाप मूक दर्शक बनकर खड़े रहोगे।
हाँ कब तलक बेटी है किसी और की
ये सोचकर साथ ना दोगे।
कब तलक मुद्दा बनाकर
बस चुनाव की रोटियाँ सेंकते रहोगे।
कब तलक बस चंद वादे और
आश्वासन देकर मुकर जाओगे।
हाँ कब तलक उस मासूम के भाग्य को कोसते रहोगे।
कब तलक दुर्भाग्यपूर्ण समाज की दुहाई पर
समाचारों में साक्षात्कार देते रहोगे।
कब तलक अस्थियों पर किसी और की एक
और बेटी के जौहर का इन्तज़ार करोगे।
अब बस करो बहुत हुआ हम बेटियाँ है
बहन है पत्नी है माँ है
बिल्कुल वैसी ही जैसे तुम्हारे घर में है।
जिनके हर रोज सकुशल घर आने की
उनके अपने बाट जोहते हैं।
नज़रों से कुछ पल को ओझल हो जाए तो
तमाम बुरे ख़्याल डराते हैं।
सम्मान की नज़रों से देखो उन्हें वो अपना
पूरा जीवन अपनों के लिए समर्पित करती है।
तुम ईंट पत्थर जोड़ते हो और वो उससे घर बनाती है
नारी होना अभिमान समझती है
देवी ना सही कम से कम इंसानियत की ख़ातिर ही
इन्हें भी एक इंसान तो समझो
इन्हें भी एक इंसान तो समझो।