कहानी एक बुढ़िया की
कहानी एक बुढ़िया की
एक बुढ़िया थी बड़ी लालची
पाली थी उसने मुर्गी
जो नित सोने के अंडे देती
बुढ़िया उनको बेचा करती।
एक दिन उसके मन में आया
मुर्गी देती रोज है अंडे
देखूं इसका पेट फाड़कर
कितने हैं सोने के अंडे।
खींच के मारा उसने डंडा
मुर्गी हो गयी टें
बुढ़िया रोई और चिल्लाई
हाय क्या कर गयी मैं।
फेंकी मुर्गी फेंका डंडा
हाथ न आया एक भी अंडा
जिसने भी यह सुनी कहानी
उसे मिला जीने का फंडा।
इसी लिये कहती हूं बच्चों
लालच बुरी बला है
जो इसके चंगुल में आया
उसका नहीं भला है।