ख़ामोशी
ख़ामोशी
यह ख़ामोशी भी जनाब चिज़ बड़ी जालिम है,
बेइंतहा होगी बातें यहां लेकिन कुछ सुनाई न देगा हमें।
इन खामोशियों का तो अंदाज थोड़ा शौकीन है,
मैंने इनके संग बिताए जो, वो लम्हे भी तो रंगीन हैं।
मौसिकी भी शर्मा जाए ऐसी महफ़िल यहां सजती है,
कभी इत्मीनान का संगीत तो कभी बिना लफ्जों का ही
गीत बजता है।
