मेरे ख़्वाब और मैं
मेरे ख़्वाब और मैं
उन ख़्वाबों को भी क्या नाम दूं ? जो सिर्फ जेहन में आए थे ,
कुछ गुमशुदा थे उनमें तो कुछ नए अफसाने ले आए थे।
चाहूं तो पास रख लूं उन्हें या कहीं दूर भेज दूं ,
खेल लूं थोड़ी देर उनसे या उनके आने का मकसद ढूंढ लूं।
ये कौनसी शिकस्त है उनकी ये में ना कभी समझ पाऊं ,
वे पिछे दौड़े आते हैं मेरे चाहे में जहां भी जाऊं।
देखो ना कैसा संघर्ष है मेरा ही मेरे ख़्वाबों के साथ ,
वे मुझे सोने नहीं देते और मैं उन्हें खोना भी नहीं चाहता।