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Atharv Mahajan

Abstract

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Atharv Mahajan

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मेरे ख़्वाब और मैं

मेरे ख़्वाब और मैं

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उन ख़्वाबों को भी क्या नाम दूं ? जो सिर्फ जेहन में आए थे ,

कुछ गुमशुदा थे उनमें तो कुछ नए अफसाने ले आए थे।

चाहूं तो पास रख लूं उन्हें या कहीं दूर भेज दूं ,

खेल लूं थोड़ी देर उनसे या उनके आने का मकसद ढूंढ लूं।

ये कौनसी शिकस्त है उनकी ये में ना कभी समझ पाऊं ,

वे पिछे दौड़े आते हैं मेरे चाहे में जहां भी जाऊं।

देखो ना कैसा संघर्ष है मेरा ही मेरे ख़्वाबों के साथ ,

वे मुझे सोने नहीं देते और मैं उन्हें खोना भी नहीं चाहता।


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