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सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "

Abstract

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सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "

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खामोश सब..

खामोश सब..

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खामोश सब..इल्ज़ामों का सज रहा मंडप।

वकील-पुलिस की हुई झड़प।

हाथ उठ गया एक दूजे पर,

धरनों से भर गयी सड़क।


समाज में गलत सन्देश गया,

ज़िम्मेदारियाँ हुई बेइज़्ज़त।

स्वाभिमान कमजोरी नहीं,

किस बात की इतनी अकड़।


है सज़ा के हक़दार दोनों,

जाने सरकार क्यों है चुप।

"उड़ता" लिखना व्यर्थ है,

खामोश होकर बैठे हैं सब।


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