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Anshu Shekhawat

Tragedy

4  

Anshu Shekhawat

Tragedy

ख़ामोश दिल

ख़ामोश दिल

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ज़िन्दगी कुछ बिखरी सी है

ख़ामोशी भी रुआंसी सी 

वक़्त बेवक्त दिल भर आता है

भूला रिश्ता हर पल रुलाता है


क्या मेरी गलती है औरत होना ?

जो हर पल मेरा इम्तेहान हो जाता है

मैं क़ाबिल होकर भी मजबूर रही

न चाह कर भी खुद से दूर रही


हर लम्हे में मैं खो सी जाती हूँ 

हस्तीे हूँ सबके आगे पर अकेले में 

रो जाती हूँ 

हर चाहत अंदर ही मार के 

मैं हर रात पलकें बंद करके 

सो जाती हूँ।


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