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Karan Singh parihar

Tragedy

4.5  

Karan Singh parihar

Tragedy

खाली पेट सांत्वना

खाली पेट सांत्वना

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विपदाओं की गठरी लेकर 

फुटपाथों पर बैठी आँखें,

खाली पेट सांत्वना खाकर  

सोने को तैयार खड़ी हैं।


भोर हुई फिर वही कहानी  

दुहराने को चली गरीबी।

हाथ पसारे भटके आँसू 

किन्तु मिला न कहीं करीबी।

कचरे के ढेरों का मंथन  

करके फिर वो बूढ़ी बाहें,

जूठन के बिखरे दानों को 

खाने को लाचार खड़ी हैं।


मट़मैले कम्बल को ओढ़े 

साँसों के अंतिम पड़ाव में।

ठिठुरन जीवन ढूँढ रही है 

दूर कहीं जलते अलाव में।

घने कुहासे के आँगन में 

गिरवी होकर मूक व्यथाएं,

आँखों से बहते पानी संग 

जाने को हरिद्वार खड़ी हैं।


घर के आँगन में तुलसी की  

झुलस गयी मानस चौपाई।

बूढ़ी खटिया विलख रही है,  

और पलंग पर हँसे रजाई।

संस्कारों की छत के नीचे 

पश्चिम की फूहड़ संस्कृतियां,

चकाचौंध की नागिन बनकर 

डसने को परिवार खड़ी हैं।


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