कभी अलविदा न कहना ...!
कभी अलविदा न कहना ...!
गुज़रे वक्त की धूल ही सही ,
इंतहाई सफर का
एहतराम करता हूँ मैं
राही ज़िन्दगी का ...
ये मेरी जूस्तजू
कलम की ताक़त से जो मैंने
इतनी शिद्दत भरी
अपनी दास्तान-ए-ज़िंदगी लिखी थी ...
उसे एक बेरहम हवा के
झोंके ने पल भर में
साबुन के बुलबुले की तरह
उड़ा दिया !
मैं तो कुछ भी नहीं ... !
इन गुज़रते वक्त की आहट पे
मेरे दिल की धड़कनों में
मेरे ईमान की तपिश
जो यूँ बेइंतहा
वक्त-बेवक्त मुझे
अपनी जद्दोजहद पे
बेशक़ तड़पाया किया ...
मगर फिर भी मैंने
अपनी बेपरवाही के आलम में
खुद को वक्त के थपेड़ों में
बहने से बचाया किया ...।
ये मेरी बदकिस्मती है कि मैंने
अपने ख्वाबों को गर्दिश में
डूबने से बचा तो लिया,
मगर यूँ ही कभी-कभी
खुद को तन्हा-सा लगता है ।
ऐ मेरे प्यारे दोस्तों ! यही है इल्तिज़ा मेरी
याद रखना मेरी
इबादत-ए-ज़िंदगी ...
मैं दुबारा रूबरू हूँगा
आप सब इस नाचीज़ को
न भूलना ...
कभी अलविदा न कहना ...!