कैसी हो तुम कभी तुमने पूछा ही नहीं
कैसी हो तुम कभी तुमने पूछा ही नहीं
चिंता किस बात की है कभी तुमने पूछा नहीं !
चेहरे में उदासी क्यों है
कभी तुमने पूछा नहीं
हर वक़्त की तुम्हारी कही कड़वी बातें
दिल को दुखाती रहीं
मेरे सब्र का इम्तिहान लेती रही
कैसी हो तुम कभी तुमने पूछा नहीं
सजधज कर होंठों पर मुस्कान इंतज़ार करती
सामने ही खड़ी हूँ
पर इंसान न समझा तुमने
सात फेरे लेकर तेरे साथ
बिना हिचक के आई
दूसरों के सामने पत्नी का दर्जा न दिया तुमने
कैसी हो तुम कभी पूछा न तुमने
औरत को खिलौना कह उसका मान न किया
सिंदूर की क़द्र न की
शादी का मज़ाक बना दिया
रिश्तों की अहमियत न जान
घर से भागा दिया
इतने दिन की सेवा का
मान न किया तुमने
दिल में एक हूक सी उठती है कि काश
कैसी हो तुम कभी पूछ ही लेते ।