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Prem Bajaj

Romance

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Prem Bajaj

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कैसे भूलूँ

कैसे भूलूँ

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जानता हूँ तू अमानत है किसी और की,

पर क्या करूँ ये दिल नहीं मानता।

इस दिल को नहीं ग़वारा कि

माने तुझे किसी और का,


तुम भुला सकती हो मुझे,

पर मैं कैसे भुला दूँ उन पलों को,

जो जिए थे सँग तुम्हारे।


कैसे भूलूँ वो लम्हात जब

मेरे शाने पर तुम सर रख कर

चैन से नयन मूँदे ख़्यालों में 

खो जाती और मैं तुम्हारी ज़ुल्फ़ो से

अटखेलियां करते हुए तुम्हारी

पेशानी को चूम लेता था।  


लेकर अपने हाथों में तुम्हारे हाथों को,

वो छुअन, वो हरारत,

आज भी वो अहसास महसूस करता हूँ

जब-जब देखता हूँ आइना तो

अक्स तुम्हारा ही नज़र आता है। 


 करता हूँ बँद पलकें तो ख़्यालों में

तुम ही तुम आती हो, तुम्हारी यादें,

तुम्हारी बातें, हर पल रहती है हसरत तुम्हारी

महसूस करता हूँ हर धड़कन में तुमको,


साँस में महकती है खुशबू तुम्हारी     

आता नहीं यकीं बेवफ़ाई पे तुम्हारी,

दिल कहता है तुम बेवफ़ा नहीं हो सकती,

ग़र है ऐसा तो क्यों प्यार की रूसवाई।


 याद करो वो सारी बातें तुमने कहा था

तुम मेरे सिवा किसी और की नहीं हो सकती,

फिर क्यों तुमने सब वादे, सब कसमें तोड़ दी

तुम्हारी जुदाई का ऐसा चुभता है

नश्तर की रुह छलनी हुई जाती है।


मिटा दूँ ग़र तेरी यादों को मगर

साँसों से कैसे निकालु तुझे,

हाँ अब भी मुझे प्यार है तुमसे,

ग़र भुला दूँ तुम्हें तो ये खुदकुशी होगी।


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