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संजय कुमार

Abstract

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संजय कुमार

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काश मैं एक नेता बन जाऊं

काश मैं एक नेता बन जाऊं

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काश मैं एक नेता बन जाऊं राज करूं इस दुनिया पर

सभा में अपनी बैठ कर शान दिखाऊं इस जनता पर

जो चाहे सो काम करूं मुझपे किसी का जोर नहीं

जनता को मुट्ठी में रख कर कतपुटली की नाच नचाऊं मैं


काश मैं एक नेता बन जाऊं राज करूं इस दुनिया पर।

नेता में जो शान शौक है वो शायद कहीं और नहीं

रैली में दो शब्द बोल कर जनता को फुसलांऊ मैं

सच में तो कोई काम नहीं बातों में काम चलाऊं मैं


काश मैं एक नेता बन जाऊं राज करूं इस दुनिया पर।

जनता से झूठा वादा कर के सत्ता में फिर आ जाऊं मैं

भला किसी को पता कहां आपस मैं दंगा कराऊं मैं

लोगों में दंगा हो जाने पर दंगा को शांत कराऊं मैं


दंगा बंद हो जाने पर जनता से मिलने जाऊं मैं 

काश मैं एक नेता बन जाऊं राज करूं इस दुनिया पर।

जनता को कुछ ज्ञान नहीं जब चाहूं उसको गुमराह करूं

काम कहां में करता हूं जब भी करूं बस वादे करूं


कोई नहीं इस जनता की जब चाहे इनपे वार करूं

काश मैं एक नेता बन जाऊं राज करूं इस दुनिया पर।

जनता की मुझे चाह नहीं बस चाह मुझे इस कुर्सी की

जनता जीती है या मरती है इसका मुझे कोई कैर नहीं


बस चाह मुझे इस कुर्सी की जिसपे जीवन भर राज करूं

काश मैं एक नेता बन जाऊं राज करूं इस दुनिया पर।

चाह नहीं लेखक को इन नेताओं का गुणगान लिखे

पर चाह मुझे इस जनता की नेताओं की काली करतूत लिखे


उठो किसानों उठो गरीबों उठो जवानों वक्त नहीं अब भक्ति का

वक्त है तो वक्त है अब अपनी दिखानी शक्ति का।


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