कार्तिक पूर्णिमा।
कार्तिक पूर्णिमा।
आओ आज हम तुमको कार्तिक पूर्णिमा की कथा सुनाते हैं।
प्रबोधिनी एकादशी नाम के साथ देव- दीपावली भी कहते हैं।।
वध किया त्रिपुरासुर असुर का, त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं।
भोलेनाथ बने त्रिपुरारी तब से वेद- पुराण बतलाते हैं।।
धार्मिक, आध्यात्मिक रहस्य भरा दिन हर्षोल्लास से मनाते हैं।
खुशियां और समृद्धि के कारण भगवान विष्णु को जगाते हैं।।
अब हम तुमको माता तुलसी के आगमन के बारे में बताते हैं।
सती वृंदा नाम था इनका श्री विष्णु से नाता बतलाते हैं।।
जलंधर के अत्याचार के कारण श्री शिव- विष्णु वध इनका करते हैं।
पतिव्रता सती वृंदा यह सुनकर श्री विष्णु को शापित करती हैं।।
देवताओं की प्रार्थना सुनकर शाप-मुक्त इनको कर देती हैं।
खुद को अग्नि में भस्म करके पति जलंधर में मिल जाती हैं।।
शाप का मान रखने के खातिर श्री विष्णु शालिग्राम बन जाते हैं।
सती वृंदा राख से उत्पन्न "तुलसी पौधा" श्री विष्णु मस्तक पर धारण करते हैं।।
लक्ष्मी स्वरूप मान दे करके "तुलसी-विवाह" का आयोजन करते हैं।
शालिग्राम बने श्री विष्णु जी, सती वृंदा तुलसी संग नाता जोड़ते हैं।।
"कार्तिक पूर्णिमा" एकादशी का जो विधि से पूजन करते हैं।
सुख- समृद्धि उसको है मिलती "नीरज" के पाप हरते हैं।।