कान्हां ही करतार हैं
कान्हां ही करतार हैं
कृष्णा ही जीवनज्योति कान्हां ही मेरे करतार,
आत्म तत्व रूपी दुल्हन के मोहन ही भरतार।
रूप अनूप अधरों पर मुरली मोर मुकुट धारी,
भाल तिलक तिरछे नयना गोवर्धन गिरिधारी।
श्यामल तन सुमन सौम्यता सोहें कुंजबिहारी,
कहाँ मिलेंगे ऐसे प्रियतम छवि मोहे नर नारी।
वरण करो मेरा मन हरो, तन मन से बलिहारी,
हरि चाहत हृदय में पाले और न चाह हमारी।