जय
जय
वात्सल्य की मूरत है, इस हवा की कोई सूरत है
एहसासों का विवरण है वो, अदृश्य हैं तो क्या हैरत है
इसी की विशिष्टता ने, ऋतुओं की रुहानी रीत बनाई
कुदरत ने अपनाकर उसे, हर मौसम की खुशियां मनाई
कभी सुखदायी कभी क्लेशकारी, स्वच्छंद बहती पवन
हर रूप में मगर चाहती उसे, सृष्टि सदा गाती उसके स्तवन
जीवन भी उस पवन सरीखा, न जानें कब क्या मौसम दिखा दे
बिन आलय की पाठशाला में, जानें कौनसा पाठ सीखा दे
प्रेरणा हैं प्रकृति कि, नए मौसम में नई सुंदरता पहने
खूबसूरती दृष्टि में बसती, कभी न त्यागे नजरियों के गहने
वसंत का एक ही विवरण,मन में श्रद्धा सबूरी की ज्योत जले
जीवन अनिष्ट नहीं अरिष्ट हैं, ईस अंतर का हम आशय जानले
तो सावन पतझड़ हर मौसम से, मोहब्बत होना तय हैं
हर ऋतु सुकून भरा हो, यहीं जीवन पे जय है।