जो
जो
जो नहीं मृत्यु से डरता है।
वह बार बार नहीं मरता है।
जो कर्म डगर पर डटा रहा,
वही मंजिल तय करता है।।
जो सबको अमृत पिला दिया
खुद पर्वत वन में भटकता है।
इतिहास गवाह है सदियों से,
वह ही विष घूंट गटकता है।।
जो हार हारकर भी न रुका,
वह हार से शोभित होता है।
तालियाँ गूँजती स्वागत में,
उसका अभिनंदन होता है।।
जो कठपुतली बनकर नाचा,
वो कभी भला क्या टिकता है?
उसका ज़मीर मर जाता है।
कौड़ी कौड़ी में बिकता है।।
जो औरों के मन की न सुनें,
अपने ही मन की सुनाता है।
यह बात सही सोलह आने,
सब ही उससे कतराता है।।
जब तक आँखों में पानी है।
तब तक ही दुनिया सुहानी है।
आँखों का पानी सूख गया,
फिर तो बदनाम कहानी है।।