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AJAY AMITABH SUMAN

Tragedy

3  

AJAY AMITABH SUMAN

Tragedy

जनतंत्र

जनतंत्र

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नमक तेल राशन समान के साथ,

चल रही लड़ाई दुकान के साथ।

मुकाबला हो कैसे डायन है महँगाई,

कि पीस रही है बेहिसाब दाम के साथ।


जेब हुआ खाली न सर पे रहे बाल ,

क्या कोई कटवाए हज्जाम के साथ।

सूखा, मलेरिया और बाढ़ की तबाही,

कैसी कैसी हैं आफ़तें इंसान के साथ।


बची हुई जो हसरतें थीं वो भी पूरी हुई,

गुल हुई है बिजली हर शाम के साथ।

कहते हैं जन का ही तंत्र है तमाम ये,

अब हो रहे डिबेट हैं आवाम के साथ।


वादों की दुनिया में ख्वाबों के खंजर से,

कट रहे हैं सारे पर आराम के साथ।


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