जंग
जंग
खुद की खुद से जंग छिड गई
मैं खुद ही खुद के खिलाफ हो गई
शायद नकारात्मकता का मायाजाल था
विशाल रुप लेकर आया था
डर गई मैं पलभर हिंमत हार गई
तभी अंर्तमन से आवाज आई
सकारात्मक सोच जाग गई
फिर दटकर हुआ मुकाबला
कैसे टिक पाती नकारात्मकता
हारकर धुएं सी उड़ गई।
