" जमीर "
" जमीर "
कोई बातें नहीं
दीदार नहीं अपनों को
भूल जाना अच्छा नहीं !
किसी और की बातों पर चलकर
अपनों से दूर जाना ठीक नहीं।
दूर बहुत दूर रहकर इस तरह हमको
अपनी धरती हमें पुकार रही !
कुछ कर्ज चुकाना है अपने लोगों का
जमीर हमें भी धिक्कार रही ।
स्वतंत्र रहने के अधिकार का
ज्ञानवोध हमें जिसने बचपन से दिया !
उसको भूल जाएं कैसे
जिस तरह जो प्यार हमको जीवन में दिया।
बातों और संवादों से ही केवल
हम सब मलिनता दूर कर सकते हैं !
जन्म जो देता है इस जग में
उसे मझधार में कैसे छोड़ सकते हैं ?
आज हैं कल हम ना होंगे
इस जहाँ में समय सबका कुछ और होगा !
बिखर कर टूट जाएं फुट जाएं
इस धरा पर हाथ फिर मलना पड़ेगा।
