जमीर
जमीर
ऐसा काम ही क्यों करें
के मुँह छुपाना पड़े
वहाँ से कमा कर क्या लाये
यहाँ जमीर बेचकर आना पड़े
किसी की नजरों से गिरने मे
इक पल लगता है
गिर के उठने मे
मगर जमाना लगे
मेरे अल्फाज अक्सर
उन्हें शर्मिंदा करते है
जमीर मुर्दा है जिनके
बदन जिन्दा लगते हैं
बेशक मामूली है
रूमिन्दर की कलम
मगर सच्च लिखने का
रखती है दम
और सच्च लिखती रहेगी
जब तक जहाँ मे है
जब्र जुल्म और सितम।