जला, जो हाथ में मशाल है
जला, जो हाथ में मशाल है
कोसता तू भाग्य को,
जगत कहीं सरल नहीं
जो कामना विराट की,
प्रयास भी सटीक हो।
देख स्व-कमान में,
क्या धार है चढ़ी असि
अरि खड़े ज्यों युद्ध में,
खड़ग लिए तो वार कर।
निशा का जो पहर हुआ,
आँख लक्ष्य दर्श हो
दिल में जले जो आग है,
आलोक सा कमाल हो।
कर्म सबके साथ हैं,
सत्य की तलाश है
आवाज अंतरात्म से,
सुने जो वो पवित्र है।
अभी तो यत्न हैं बहुत,
दिया भी दिखता दूर है
प्रकाश की जो चाह है,
जला, जो हाथ में मशाल है।
(अरि- शत्रु, असि- तलवार, खड़ग- तलवार, दिया- दीपक, यत्न- प्रयत्न)
