जल, प्रकृति और पर्यावरण
जल, प्रकृति और पर्यावरण
जल, प्रकृति, पर्यावरण में यह विष है घुल रहा
कोई बुराई नहीं समझदार बन जाने में
कचरा निकला फैक्ट्रियो से जा रहा
नीली नदियों के जल में
सांइस लैब से निकला
कैमिकल मिल रहा धरती में
फैक्ट्री से निकलता धुआँ
घुल रहा पवन में
जगह जगह थूकना और देश की
सुंदरता को कुरूप बना रहा
बीमारी फैला रहा
यहाँ मत थूको, कचरा कूड़ेदान में डालो
आदि ये आज भी कहना- लिखना पड़ रहा
सब बनते है होशियार अपने अपने में
बस पागल बन जाता है
इंसान सबको सही समझाने में
अब कौन सहयोग करेगा जल, प्रकृति,
और पर्यावरण बचाने में ?
