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Harshita Dawar

Tragedy

4.6  

Harshita Dawar

Tragedy

जज्बात माँ के

जज्बात माँ के

1 min
321


वक़्त की भी क्या बयानियत है

ना तेरा कसूर था ना मेरा कसूर है।

तू अपनी जगह ठीक था

मैं अपनी जगह ठीक हूं।


तुझे अपने लिये जीना था

में सबके लिए जीती हूं।

तेरा परिवार तेरा था,

मैंने तो अभी पराया समझा ही नहीं।


तुझे अय्याशियाँ करनी थी

महज में अपना समझती रही।

बेरुखी थी तेरी

हम प्यार में तबाह हो गए।


मुखौटे पहने लोगों का सुना था

क्या पता था अपना ही ऐसा होगा।

कसूर ना तेरा था, ना मेरा है

बस तू जीना चाहता था अपने लिए।


हम करते रहे अपने के लिए

अब इंतिहा की घड़ी आन पड़ी।

कितना सही कितना तड़पी

कितना कहा कितना सोचा कितना समझा।


मासूमियत का फायदा उठाते कितने देखे

अब और नहीं सहूँगी, तब बेटी से बहू बनी।

बहू के साथ अर्धागीनी बनी

अर्धागीनी का मतलब आधा अंग

पर मैं अपाहिज ही रह गई।


अर्धागीनी का सफर खत्म हुआ

मां बान गई।

अपनी परछाई को खून के

कतरों से सींच रही हूं।


अकेले थी पहले अब दोकेली हो गई हूं

ना छोड़ ही बेगरदों को जिसने तड़पाया है।

मां बन के मैंने दुर्गा रूप पाया है

शेरनी की खाल में भ्वनी रूप पाया है।


डरना क्या डरने का वक़्त आया है

डरने का वक़्त आया है।


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