जितना समझूँ
जितना समझूँ
जितना समझूँ,
ज़िंदगी की साँसों को,
उतना उलझती जाती हूँ।
किसी घर उठती डोली,
कोई घर अर्थी सजाता है।
"है" और "था" में,
ज़िंदगी के मायने बदलते जाते हैं।
जब सुलगती हवन की संविधा,
खुशहाली वह दर्शाती है।
वो उठती लपटें चिता से,
दिल छननी कर जाती हैं।