जिनसे हम हैं
जिनसे हम हैं
हम उन रिवाजों से है
चले आ रहे युगों से
हम बँधे है उनसे
पर वो आक्षेपित नहीं है
अपनाये गए हैं
जो अच्छे हैं हमेशा
जो ठीक न लगे
लचीला बनाये
पर भुलाये नहीं जा
सकते कभी
हिस्सा हैं संस्कृति का
हमारी अस्मिता का
लोक व्यवहार में हो
आम जन के लिए हो
न कोई संकोच हो
अपनाने में
निभाये जाने में
मुखालफत उन रिवाजों की
जिनसे हम, हम हैं।