ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
जैसे बनाया है ना तूने मेरा तमाशा,
मैं भी तुझें एक रोज़ बतलाऊंगी।
जैसे तूने मुँह मोड़ लिया है ना मुझसे,
मैं भी तुझें एक रोज़ तन्हा छोड़ जाऊंगी।
तूने जो कहर ढाया है ना मुझ पे,
मैं भी इसे बखूबी निभाऊंगी।
सामने तेरे 'मौत' बिठाकर ऐ 'ज़िन्दगी',
मैं तुझे तुझसे जीत जाऊंगी।
जैसे बनाया है ना तूने मेरा तमाशा
मैं भी तुझे एक रोज़ बतलाऊंगी।