........जिंदगी.........
........जिंदगी.........
उदास क्यों है जिंदगी ख्वाबों से तू उभर के आ,
खास है तू भीड़ में
भीड़ से निकल के आ।
गुजर चुके पलों को ज्यादा सोचता है जिंदगी,
रफ्ता रफ्ता रफ्तार तेरी थम चुकी है तो भी क्या,
गुमनाम हे तो गम है क्या,
कुछ खो गया तो गम है क्या ।
जो खो गया ,तेरा नहीं
मजबूत दिल, रोते नहीं
पल ,पल में कितने भेद है
हर पल में जीत मुमकिन नहीं।
भमर की जिंदगी तो है सहद की तलाश में,
संगीत भी तो है बस, साज की तलाश में।
कवि यहा तो है बस ,लब्ज़ की तलाश में।
हर फूल तो नहीं पहुंचती
खुदा के दरबार में।
कुछ खिल के बिखर जाते हैं धीमी हवाओं में भी,
उदास क्यों है जिंदगी
ख्वाबों से तू उभर के आ ।
उम्मीद अगर ऊंची हो तो,
आराम को विराम दे।
मुट्ठी में कर ले अपनी तू ,
धड़कनों की रफ्तार को ।
बदल दे अपनी चाल तू
खामोश रहना सीख ले ।
तड़प तड़प के भी,
मत भूल ना मुसकान को
उदास क्यों है जिंदगी
ख्वाबों से तू उभर के आ।
खुदा के दरबार में भीख मांगना तू छोड़ दे।
मेहनत से अमल कर खुद को ,नसीब को कोसना छोड़ दे।
गिर के भी उठता है जो नीम उसकी मजबूत है ,
डगमगाए भी जो कदम ,
संभलना खुद को सिख ले।
उदास क्यों है जिंदगी
ख्वाबों से तू उभर के आ।
अपने यहां देते सितम तो ,
आंख तेरे क्यों हो नम
अपना पराया कुछ नहीं
सिर्फ जिंदगी में तेरी मोह है।
मोह माया से उभर के आना भी तो एक कला है,
उदास क्यों है जिंदगी
ख्वाबों से तू उभर के आ ।
सरकश का शेर भी तो दहाड़ना भी भूल गया।
पिंजेर में कैद पंक्षी भी तो गगन में उड़ना भूल गया।
कभी मशहूर था तू भीड़ में जिंदगी भी तू भूल गया ।
उदास क्यों है जिंदगी
ख्वाबों से तू उभर के आ ।
