Madhu Vashishta

Abstract Inspirational

4  

Madhu Vashishta

Abstract Inspirational

जिंदगी।

जिंदगी।

2 mins
380


यूं ही बैठे देख रहे थे, जिंदगी को गुजरते हुए।

नए पल आते हुए और पुराने पल जाते हुए।

अपने पराए होते रहे ,और पराए अपने बनते रहे ।

अपने परायों की भीड़ में हम यूं ही खोते रहे।

रास्ता कौन सा था, यह जानने की आस नहीं।

सब पुराने खो गए ,नयों का चेहरा याद नहीं।

जो परवाह करते थे पहले ,वह अब भी परवाह करते होंगे।

दिखें या ना दिखें, याद तो मुझे ही करते होंगे।

बस हो गए थोड़ी दूर, उनसे मिलने की आस नहीं ,

पर सच पूछो तो मन उनके लिए भी उदास नहीं।

मैं आराम कर सकूं इसलिए ही तो गए हैं वो।

मेरे रास्ते के सारे कांटे दूर से ही सही पर साफ कर रहे हैं वो।

यूं ही जिंदगी के पीछे भागते लोगों को देखती हूं मैं।

कहां तक वह दौड़ पाएंगे यह भी जानती हूं मैं।

मुस्कुरा के, धोखे से, जो छलते हैं लोगों को।

जिंदगी की दौड़ में वह भी तो रह जाएंगे।

सामान यहां ही छूट जाएगा, वह आगे निकल जाएंगे।

भूल जाएंगे लोग ,उन्हें कौन याद रख पाएगा?

आंखें बंद करके देख लेना कोई पास नहीं आएगा।

यूं ही आंखें बंद कर मुस्कुरा रही हूं मैं।

सब दूर वालों को समीप ही पा रही हूं मैं।

सबको प्रेम की भिक्षा देना।

सबको मुक्ति की दीक्षा देना, कर्म सभी के अच्छे करना,

यही इच्छा लेकर शांत भाव से आत्मा को परमात्मा में बदलती जा रही हूं मैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract