ऐ हवा
ऐ हवा
ऐ हवा
तू आज इतनी
बहकी सी क्यों है ?
कहां से चली आयी
कहां तुझे जाना था?
तेरी हर एक चाल पर
मेरा मन व्यथित होता है
तू कहीं उधर से तो ना चली
जहां मेरा चैन
मेरा सकून रहता है।
और मुझे छू कर
क्या तुझे वहां जाना है
जहां मेरी मंजिलें है।
एक पल ठहर जा मेरे पास
कि तुझसे मैं जान पाऊं
आखिर बात क्या है ?
आखिर चल क्या रहा है ?