ज़िन्दगी को देखा मैंने
ज़िन्दगी को देखा मैंने
कल एक झलक ज़िन्दगी को देखा मैनें
करते हुए बन्दगी ज़िन्दगी को देखा मैंने ।
पराए तो गिरा कर माफी मांग लेते हैं
दर्द देते अपने लोगों को देखा मैंने।
इन्सान को इन्सान ना समझें ऐसे उंचे
अमीरों को अंहकार में जीते देखा मैंने।
लोगों के सपने पल में हकीकत बन गए
खुद के उजड़ते सपनों को देखा मैंने।
ए इन्सां क्या लाया क्या ले जाएगा साथ तू
बड़े-बड़े अंहकारियों का अंहकार टूटते देखा मैंने।
भोला-भाला नहीं हूं चालाक हूं बड़ा
कहते-सुनते लोगों को देखा मैनें।
शायर बहुत हैं मगर जो दर्द बयां कर
सके शायर वो प्रेम को देखा मैनें।