जिंदगी कभी रुकती नहीं
जिंदगी कभी रुकती नहीं
जब बच्चे थे मन सच्चा था
कोई स्वप्न नहीं सब अपना था,
फटे बदन हम राजा थे
सारा जहां बस अपना था।
कुछ उम्र गई कुछ सपने जगे
हर्षोल्लास से हम निकल पड़े,
जिद थी सब हासिल करने की
बंद दीवारों में दिन रात खपे।
बचपन से युवा तो हो गए
चेहरे के भाव भी बदल गए,
आने वाले कल की खातिर
हम बचपना अब खो दिए।
अपना घर अपना परिवार
एक जिम्मेदार से हो गये,
चेहरे का नूर अब गायब था
बच्चे बड़े अब हो रहे।
काठ पकड़ वो दौर भी आया
लाचार से हम अब तन्हा थे,
शौहरत दौलत का मोह नहीं
अपनों के लिए हम रोते रहे।
हर दौर की अपनी कहानी है
शोहरत है और जिंदगानी है,
हर पल की शोहबत ले लो
यूं ही ये उम्र बीत जानी है।