ज़िन्दगी एक खेल
ज़िन्दगी एक खेल
ज़िन्दगी नाम है इक सफर का,
हम आए है मुसाफिर इस मुसफिर खाने में,
ना जाने कब ये सफर खत्म हो जाए, कोइ नही जानता है।
किसी की खट्टी है तो किसी की मिठ्ठी है ये सफर की मिठाई
किसी का सफर लम्बा हो जाता है,
खत्म होने का नाम ही नहीं लेता,
इन्तज़ार रहता है उनको कि कब अन्त होगा इस सफर का,
कब मिलेगी मँज़िल,
ना कहा होगा हमारा अगला ठिकाना, कौन जाने।
और किसी का सफर शुरू होने से पहले ही अन्त आ जाता है,
सफर का आन्नद तो ले ही नहीं पाते ,
बस कुछ कदम अभी तो चले थे, और सफर खत्म भी हो गया।
ना जाने क्या-क्या रँग दिखाती है ज़िन्दगी,
किसी को कुछ दे जाती, तो किसी का कुछ ले जाती है
ज़िन्दगी।कभी लोगो से खेलती और कभी उनको ही खिलाती है ज़िन्दगी।
किसी की अफ़साना बन जाती है ये ज़िन्दगी,
किसी के लिए अफ़साने बना देती है ये ज़िन्दगी।
किसी को मृगतृष्णा लगती, किसी के हाथ में कस्तूरी दे जाती है ज़िन्दगी।
किसी को आईना की तरह दिखती,
किसी को धुँधली नज़र आती है ज़िन्दगी।
किसी को कीमत चुकानी पड़ती है ज़िन्दगी की और
किसी को कीमती नज़र आती है ज़िन्दगी।
किसी को फूलों के हार पहनाती तो किसी को काँटे चुभाती है
ज़िन्दगी।कभी अच्छी, कभी बुरी, कभी एहसास है ज़िन्दगी।
किसी के लिए सज़ा, तो किसी के लिए कज़ा,
किसी के लिए खुदा की रहमत,
किसी के लिए कुदरत, किसी के लिए जन्नत,
किसी के लिए जहन्नुम तो किसी के लिए इक पैग़ाम,
तो किसी के लिए ईनाम और किसी के लिए खेल है ज़िन्दगी।