जिंदगानी
जिंदगानी
छोटी सी है ये जिंदगानी,
क्यों ना हंस के बिताई जाए।
क्या रखा है ईर्ष्या और द्वेष में,
क्यों न इसे प्रेम से बिताया जाए।
क्या रखा है नफरत और तकरार में,
क्यों न मित्रता सबसे बनाई जाए।
क्या मिलेगा कड़वे बोलो से
किसी का दिल दुखा कर,
क्यों न दो मीठे बोलों से किसी
के चेहरे पर मुस्कान लाई जाए।
क्या रखा है चापलूसी और चाटुकारिता में,
क्यों न ईमानदारी से कर्तव्यों को निभाया जाए।
क्या रखा है आलस और आराम में,
क्यों ना मेहनत से दुनिया में नाम कमाया जाए।
बहुत किया मां बाप ने हमारे लिए आज तक,
क्यों ना उनकी खुशी के लिए कुछ किया जाए।
गर्व हो उन्हें भी अपनी संतान पर,
क्यों ना इस तरह से ये जीवन जिया जाए।
