जीवंत स्वप्न।
जीवंत स्वप्न।
राह तकते नयन की, पथगामिनी हूँ मैं चेरी,
दीप-दीप जले सब, अनुरागिनी हूँ मैं तेरी।
श्वासों का अनुबंध सहज, मूकता का द्वार खोले,
भींगे अंचल का मृदुल तल, स्नेह प्यार की ग्रंथि डोले,
चिर स्वप्न से जग जाती यूँ, सहभागिनी हूँ मैं तेरी।
बसें उर में प्राण प्रियवर, मोतियों का हार बनकर,
नभ वक्ष पे सघन बादल, रश्मियों के पांख लेकर,
उड़ चली आग़ोश में सुधि, मनस्वामिनी हूँ मैं तेरी।
सरगम की धुन गूंज उठे, पग चार निरन्तर साज बजे,
नृत्य करूँ प्रतिमा बन तेरी, तुम सर के बन साज सजे।
जीवंत हो अरमान प्रतिपल अभिशारिनी हूँ मैं तेरी।