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GOPAL RAM DANSENA

Abstract

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GOPAL RAM DANSENA

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जीवन संग्राम

जीवन संग्राम

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इस दुनियां में जीवन

बचपन से बुढ़ापे तक

इंसान संघर्ष करते

कोई जीतकर गया हो बेशक

पर अपनी नजर तो

नहीं कुछ आम है

हाँ मैंने माना

जीवन एक संग्राम है I

बचपन हाँ बचपन

जो खिलौनों से शुरू हो

खिलौना बन जाता

कोई रोता कोई रुलाता

श्रवण बन जीवन भर

माँ बाप के सपने ढोता

कोई माँ बाप का सपना धोता

आगे बढ़ वहीं माँ बाप

वह माँ बाप फिर वहीं ख्वाब

जीवन जिसका पलता था

,छत्र छाया मे

अब जीवन पालता है

माया में

सर पर बच्चे और बूढ़े

युद्ध करता चारों ओर

सफेद होते तक अपने

शरीर और अरमान

झुर्रियों से ढंक रहे

अपनी पराजय

अंतिम इच्छा ये ही सुना

कि अब ले चल हे भगवान

जीवन एक संग्राम

हाँ जीवन एक संग्राम।


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