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Vinita Shah

Romance

5.0  

Vinita Shah

Romance

जीवन संग्राम

जीवन संग्राम

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हो गई आवाज धूमिल-सी,

टिमटिम दिखाई देती तारों की

मंजिल-मंजिल भटक रही हूं,

ना जाने क्या पाने को

अब भी दिल बस धड़क रहा है।

ना जाने क्या पाने को

दूर कहीं अहसास दिलाता,

डूब-डूबकर जाने को

छोड़ चुकी जीवन अब मैं,

जिसको पाने की आस नहीं

कहीं दूर कुछ भूला-सा है,

पास आने की बात नहीं

अब लगता है अहसासों में,

डूब-डूब मर जाऊंगी

कहां खड़ी क्या सोच रही हूं,

झंझट से बच जाऊंगी।

आह! यही तो किस्मत है,

अब लड़ते-लड़ते मरने की

बहुत लड़ी मैं, खड़ी रही सन्नाटे में

पर अब लगता है हिम्मत ने,

ठान ली है हारने की

मैं भी अब इसी संशय में,

लड़ रही हूं हारने को

पता नहीं कल क्या होगा,

जाने कितने सपने फिर गुम होंगे

आज अभी फिर, जाती क्यों मैं लड़ने को,

खुद से जीत नही

ं मैं पाती हूं

हाय! किस्मत देखो मेरी,

लड़ने से थक जाती हूं।

यही, यही हैं वो पल,

जिसको समझ नहीं मैं पाती हूं

जीवन मेरा सफल हुआ अब,

गर्त की ओर मैं खुद को पाती हूं

अब इतना ही समझ आ रहा,

और नहीं कुछ पाने को

जो था पाना सबकुछ पाकर,

बस बनने से हार रही हूं

हार रही हूं शायद अब,

जीवन को तरसाने को

हार रही हूं, हार रही हूं,

जीवन को लजाने को।

दूर कहीं एक तारा होगा,

हिस्सा सबकुछ गाने को

आज नहीं मैं कल दिख जाएं,

इन सांसों के वादों में

पूछ लिया दर्द जो,

सब ले जाना दूर-दूर बिखराने को

फिर वो नई कहानी होगी।

पर हां! मेरा जीवन होगा फिर से,

फिर वो कोमल पल होंगे,

जीवन कठिन संग्राम लड़ाएगा

मैं भी होउंगी उस जीवन में,

वो मेरा हो जाएगा,वो मेरा हो जाएगा।


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