जीवन का आधार
जीवन का आधार
माँ का गर्भ छोटा लगता था,
बाहर आना एक ही था आधार।,
बाहर आया दुनिया देखी, सोचा यह है जीवन का आधार ।
सोच-सोच में बचपन बीता, बेसुध रहा ये तन -मन
ना जाने कब यौवन आया, खेलकूद सब छूटा,
अब भी मन में ये संशय था, क्या है जीवन का आधार?
कभी-कभी सोचा करता हूँ, क्या है मेरे आने का आधार?
प्रेम, परिश्रम या परिवार?
इन सब में मैं कहीं खो गया, भूल गया अपना आधार ।
प्रेमपाश,मोहजाल,भ्रम सब करते हैं चकित मुझे।
क्या खोया क्या पाया, इनकी गणना अब होती है,
गिन-गिन सब मैं घबरा जाता ,कहाँ आ गया कहाँ रहा?
वाह रे! जीवन माया तेरी, ढूँढ -ढूँढ मैं हार गया
प्यार, परिश्रम, परिवार गया।
रीते हाथों बैठा हूँ मैं, ढूँढ रहा जीवन का आधार ।
सब कुछ खोने पाने पर भी, एक प्रश्न यही उठता है।
क्या है मेरे जीवन का आधार?