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Vinita Shah

Others

4.9  

Vinita Shah

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जीवन का आधार

जीवन का आधार

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माँ का गर्भ छोटा लगता था, 

बाहर आना एक ही था आधार।,

बाहर आया दुनिया देखी, सोचा यह है जीवन का आधार ।


सोच-सोच में बचपन बीता, बेसुध रहा ये तन -मन

ना जाने कब यौवन आया, खेलकूद सब छूटा,

अब भी मन में ये संशय था, क्या है जीवन का आधार? 

कभी-कभी सोचा करता हूँ, क्या है मेरे आने का आधार?

प्रेम, परिश्रम या परिवार? 

इन सब में मैं कहीं खो गया, भूल गया अपना आधार ।


प्रेमपाश,मोहजाल,भ्रम सब करते हैं चकित मुझे। 

क्या खोया क्या पाया, इनकी गणना अब होती है, 

गिन-गिन सब मैं घबरा जाता ,कहाँ आ गया कहाँ रहा? 

वाह रे! जीवन माया तेरी, ढूँढ -ढूँढ मैं हार गया 

प्यार, परिश्रम, परिवार गया। 

रीते हाथों बैठा हूँ मैं, ढूँढ रहा जीवन का आधार ।

सब कुछ खोने पाने पर भी, एक प्रश्न यही उठता है।

क्या है मेरे जीवन का आधार? 


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