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Kavita Sharrma

Abstract

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Kavita Sharrma

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जीवन का सफ़र

जीवन का सफ़र

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जीवन का सफ़र है इक पहिए की तरह

घूमता रहता है जो सदा इक तरह

जन्म से सफ़र जो शुरू होता है

बचपन से बुढ़ापा यही सत्य है

इक बच्चा जाने कब बड़ा हो जाता है

जीवन के आखिरी पड़ाव बुढ़ापे

की ओर बढ़ता जाता है

इक फिर दुनिया को अलविदा कह जाता है

बस इसी तरह यह सिलसिला जारी रहता है

जिंदगी का सफ़र चलता रहता है


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