जीवन का संग्राम
जीवन का संग्राम
दुःख में दोस्तोंने मेरा साथ छोडा,
मुझे गलीयों में भटकाने के लिये।
लेकिन मुझे फायदा यह हुआ की,
मैं सही रास्ता ढुंढना सिख गया।।
बुरे वक्त में रिश्तेदारोंने मुँह मोड़ा,
मेरे मन को मायूस करने के लिये।
लेकिन मुझे फायदा यह हुआ की,
मैं सबको पहचानना सिख गया।।
मेरे अपनोंने मुझे धक्का मार दिया,
मुझे गहराईयों में डुबोने के लिये।
लेकिन मुझे फायदा यह हुआ की,
मैं गहराईयों में तैरना सिख गया।।
गद्दारोंने मुझे छल-कपट में फसाया,
मुझे अपने इशारों से नचाने के लिये,
लेकिन मुझे फायदा यह हुआ की,
मैं छल-कपट से बचना सिख गया।।
जब समयने मुझे अकेला छोड दिया,
मुझे हमेशा पायमाल करने के लिये।
लेकिन मुझे फायदा यह हुआ "मुरली"
मैं रब पर भरोंसा करना सिख गया।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ)
