जगा अर्ध-चेतन को
जगा अर्ध-चेतन को


उठ चल
क्यों निराश, हतोत्साह ?
लाचार, निर्बल
हे शक्तिमान,
क्यों बुझे स्वयं को अबल??
तुझ ही में
सारी शक्तियां छुपी है, सबल !
जगा उसको जो स्वयं स्वरूप है
अपने ही अंदर
अर्ध-जाग्रत
समाधी में लीन।
पहुंचा उस तक
अपनी सारी -
इच्छाएं - आकांक्षाएं
गलतियां - निर्बलताएँ।
जगा उसको
वो ही सुलझाएगा,
सारी गुत्थियां।
वो ही बनेगा
तेरी प्रेरणा, तेरा बल।
पहचान स्वयं को
अर्ध-चेतन को जगा, बन चेतन।
जगाने वाले कभी सोते नहीं!
उठ, चल!
फिर हर विजय तेरी है।
तू धीर, वीर, सरल, सबल।