जब तुम थी....
जब तुम थी....
जब तुम थी, तब बस तुमसे मिलने की चाहत थी,
तुम्हारे करीब आके तुमपे प्यार जताने की कोशिश थी।
जब तुम थी, मुझे और न किसी की ज़रूरत थी,
बस तुम्हारी रूह के मेरे करीब होने की खुशी थी।
जब तुम थी, तुम्हारी बातें मेरी खुशियों की वजह थी,
और मेरी बातें कुछ नहीं बस तुम्हारी और बातें सुनने का बहाना थी।
जब तुम थी, जब मेरे करीब बुराइयाँ होती थीं, तब तुम ही तो मेरा सहारा थी,
उस बुरे वक़्त में तुम ही तो मेरी मजबूती की वजह थी।
जब तुम थी, लगभग हर वक़्त तुम्हारे करीब होने की आदत थी,
और जब तुम न होती थी मेरे पास,
तब मेरे अंदर अजीब सी एक तड़प थी।
जब तुम थी, तब तुम्हारी कुछ अच्छाइयाँ थीं और कुछ बुराइयाँ थी,
तुम्हारी बुराइयाँ मुझे तुमसे दूर ले जाती थी और तुम्हारी अच्छाइयाँ मुझे तुम्हारे करीब ले आती थी।
जब तुम थी, कोई और न था, बस तुम ही तो थी,
पर तुम्हारे अलावा क्या औरों को मेरी ज़रूरत न थी?
जब तुम थी, तो मैं था, ऐसी मेरी सोच थी,
पर फिर मुझे एहसास हुआ कि तुम मेरी ज़िंदगी नहीं, मेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा थी।

