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Sarita Maurya

Abstract

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Sarita Maurya

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जब-जब सोचा बचपन तुझको,

जब-जब सोचा बचपन तुझको,

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जब-जब सोचा बचपन तुझको, बस आंख मेरी नम हो आई

फिर कोई कहानी याद आई,फिर गुज़रा जमाना याद आया।

बूढ़े बरगद से बतियाना,कोयल को यूं ही चिढ़ा देना,

तितली का खजाना याद आया.. ........


कच्चे—पक्के मटर के दाने तोड़ खेत से खा लेना

भुनी शकरकंदी संग छिपकर ​धनिया की चटनी चोरी कर,

मिलबांट नीम के पेड़ तले काका संग मजे उड़ा लेना

वो लाल मिठाई याद आई,गन्ने की ​पेराई याद आई......


भूरे भीटों के बीच—बीच वो ताल कमल से अटे पड़े

चरवाहों संग चरती गायें,भीटों में परवल औ पान लगे

कुंडल सी कुंदरू की बेलेें वन घुंघचू संग लिपटी पाई..............


मेरे बाग के पास की एक सड़क,

दिनभर करती थी धड़क—धड़क

इक रोज़ एक मोटरगाड़ी ले आई मुझे शहर पढ़ने,

अब याद रहे सपने केवल लौटूंगी गांव कभी अपने

बचपन अब तक बीता ही नहीं यादों में बसाये रखा है

सपने बचपन के टूट गये,संगी साथी सब छूट गये

फिर गांव कभी न बन पाया,बन गया शहर का इक साया

जब-जब सोचा बचपन तुझको, बस आंख मेरी नम हो आई.............. 



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