जब जब देखती हु दर्पण
जब जब देखती हु दर्पण
जब जब देखती हुं मैं दर्पण, मां आप याद आती हो।
करती हुं खुद मे आपका दर्शन, मन पर छाती हो।
जब जब देखती हुं मैं दर्पण, मां आप याद आती हो।
जब मैं बात करती हुं, आपकी याद आती है।
जब मैं गीत गाती हुं, आपकी याद आती है।
जब मैं रुठ जाती हुं, आपकी याद आती है।
जब खुश होकर हंसती हुं, आपकी याद आती है।
जब परिवार के लिए दुआएं करती हुं, मां आप याद आती है।
जब जब सुनती हुं,भजन कीर्तन, आप याद आती है।
जब करती हुं ईश्वर भक्ति होकर लीन, मां आप याद आती है।
जब जब देखती हुं मैं दर्पण, मां आप याद आती है।
जब बेटे को अपने कोई सीख देती हुं।
तब भी मां आपको मैं याद करती हुं।
जब बेटे से कोई बात मैं सीख लेती हुं।
यौवन के दिनों की ओर पल भर रुख कर लेती हुं।
तब भी मैं खुद मे आपको देख लेती हुं।
जब जब बनाती हुं मैं भोजन, आप याद आती है।
जब ख्याल मेरा रखते है मेरे साजन, मां आप याद आती है।
जब जब देखती हुं मैं दर्पण, मां आप याद आती है।
मैं करती हुं काव्य सृजन, आपसे ही मिला है यह गुन।
करती हुं शौक से मैं गायन, आपके ही गीत सुन सुन।
कभी था यह आपका स्वप्न।
कभी आप भी करती थी लेखन।
अपना यह लेखन गुण, करके मुझे अर्पण,
करवाकर मुझसे लेखन किया अपना स्वप्न पुर्ण।
मिला ईश्वर से हमें यह वरदान, उनका आभार व्यक्त करती हुं।
किया उन्होंने हमें यह गुण प्रदान, हम धन्य हुए समझती हुं।
जब जब करती हुं मैं लेखन, मां आप याद आती हो।
जब जब करती हुं मैं गायन मां आप याद आती हो।
जब जब देखती हुं मैं दर्पण, मां आप याद आती हो।