// जागो भारत के मजदूरों //
// जागो भारत के मजदूरों //
कितना और गिराओगे अपने कदमों में सर ।
हुक्मरा हावी हो रहा है तुम पर लेकर लश्कर।
ओ तुम्हें अपने पाँव की जूती समझ लिया,
उड़ा रहा वो तुम्हारे चिथड़े चिथड़े ठोकर दे देकर।
मानता हूं कि तुम्हारा ये " ज़मीर बिकाऊ नहीं " है ।
उसपे कर बैठे भरोसा तुम जिसका टिकाऊ नहीं है ।
ओ आज भी तुम्हें वो अपना गुलाम समझता है
जिसको तुम सलामी देते हो सुबह , शाम , दोपहर।
खुद की कमाई खाते हों यूं मेहनत मजूरी करके।
कैसे जीओगे तुम अपनी तमन्नाओं को यूं अधूरी करके।
तुम्हारा हक मारकर खा रहा है जिसे तुम मालिक कहते हो,
दाने दाने को रगड़ रहे एडियां सहन कर नस्तर ।
ए बड़े मकानों के लोग तुम्हारी बेबसी पर हंसते हैं।
तुम्हारे लाशों की ढेर पर इनके ऊंचे महल बसते हैं।
तुम जितना झुकोगे ए तुम्हें उतना ही वो झुकाते जाएंगे,
हैं इनकी नजर गिद्धों की जमात नोचने की रखते हैं
अपने हक की हर लड़ाई को अब तुम्हें खुद ही लड़नी पड़ेगी ।
जुल्मियो की तादाद बढ़ रही, लूट रहे जो तेरी ही कमाई को ।
गूंगे नहीं आवाज उठाओ,मजदूरों एक हों जाओ अब
मांगने से ना मिले तो छीन लो सभी मिलकर अपना अधिकार को ।
