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Ajay Gupta

Abstract

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Ajay Gupta

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जादू का सामान

जादू का सामान

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दिखता है तुमको बदन, थैला है ये मान,

ढोता हूँ संबंध कईं, तुम सब हो अनजान।


पुत्र-पिता-भाई-सखा, कितने मेरे रूप,

कभी चैन की छाँव से, कभी जलाती धूप।


सबको मुझसे आस है, मुझको सबसे आस,

ख़ुद की ख़ातिर जी सकें, नहीं किसी को रास।


बिन बंधन ये ज़िन्दगी, जैसे कटी पतंग

गिर जाए जाने कहाँ, सरक हवा के संग।


थैले में जादूगरी, वाला है सामान

सबके मतलब के यहाँ, मिलते हैं अरमान।


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