लो चला मैं
लो चला मैं
लो चला मैं ज़िन्दगी का सफर तय करते हुए,
कुछ खट्टे तो कुछ मिठ्ठे तरीके अपनाते हुए,
यूँ हीं चलता गया कदमों को साथ लेते हुए,
अपनो ने छोड़ा तो परायों का हाथ पकड़ते हुए
अपनों ने तो डाले बिच में पैर गिराने के लिए,
लेकिन परायों ने पकड़ा अपने हाथों से बचाने के लिए,
कई ज़ख्म खाए जिस्म ने ज़िन्दगी के लिए,
समय आते ही परायों ने हाथ छोड़ा ख़ुद के लिए
चलते चलते लग गए कांटे पैर में तकलीफ देने के लिए,
पता चला कोई नहीं हैं यहाँ मेरे लिए,
मंज़िल तक पहूंचते पहुंचते पता लगा हीं लिया खुद के लिए,
रोते रोते आए थे और रोते रोते ही जाएंगे अपने लिए।